शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

क्या शांतिभूषण और प्रशांत भूषण अण्णा की मजबूरी हैं?

अण्णा के सिपहसलारों की इमानदारी दांव पर है। भूषण पिता-पुत्र के बारे में रोज नई कहानी उजागर हो रही है। सबसे पहले इलाहबाद का जमीन विवाद सामने आया। अब सत्ता के सबसे बदनाम केरेक्टर अमर सिंह के साथ विवादित सीडी की कहानी चर्चा में है। ऐसे में सवाल ये है-
1. क्या शांति भूषण को मसौदा समिति में बने रहना चाहिए?
 वैसे सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का तकाजा तो इस बात की इजाजत नहीं देता।
2. अण्णा हजारे के समर्थकों का कहना है कि ये सारे आरोप सरकार प्रायोजित है?
 ये सच भी हो सकता है। लेकिन करप्शन के खिलाफ जंग शुरु करने से पहले क्या अण्णा और उनकी टीम को अपने गिरेबान में नहीं झांकना चाहिए था?
3. करप्शन के खिलाफ जंग में सच के सिपाहियों का सबसे बड़ा आधार और हथियार क्या होता है?
निसंदेह उनका नौतिक बल....।
4. शांतिभूषण और प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के वकील है। प्रोफेशनल मजबूरी के चलते उन्होंने कई झूठ सच बोले होंगे, क्या वे इससे इंकार कर सकते हैं?
फिर जो व्यक्ति प्रोफेशनल मजबूरी में ही सही अनैतिक के सामने झुक सकता है तो उसके नैतिक बल की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
5. अण्णा कहते है कि कमेटी में विशेषज्ञों की जरूरत हैं, बिल्कुल सही है। लेकिन सवाल ये है कि क्या देश में भूषण पिता-पुत्र अकेले कानूनी विशेषज्ञ हैं?  देश में अविवादित, इमानदार और नैतिकबल से लबरेज कानूनविदों की कमी नहीं है। फिर भूषण पिता-पुत्रों के लिए पूरे आंदोलन की प्रामाणिकता और सफलता को दांव पर लगाने का क्या मतलब?
अण्णा और उनके साथियों को याद रखना चाहिए कि आज करप्शन के खिलाफ जंग में पूरा देश उनके साथ है। अण्णा के पक्ष में जितनी तेजी से जनसमर्थन का ध्रुवीकरण हुआ है उतनी ही तेजी से इसका विखंडन भी हो सकता है। अब सबको साथ लेकर चलने और जनसमर्थन में विखंडन न होने देने की जिम्मेदारी अण्णा हजारे और भूषण पिता-पुत्र पर है। देखते हैं आगे क्या होता है।  

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