शुक्रवार, अप्रैल 15, 2011

क्या शांतिभूषण और प्रशांत भूषण अण्णा की मजबूरी हैं?

अण्णा के सिपहसलारों की इमानदारी दांव पर है। भूषण पिता-पुत्र के बारे में रोज नई कहानी उजागर हो रही है। सबसे पहले इलाहबाद का जमीन विवाद सामने आया। अब सत्ता के सबसे बदनाम केरेक्टर अमर सिंह के साथ विवादित सीडी की कहानी चर्चा में है। ऐसे में सवाल ये है-
1. क्या शांति भूषण को मसौदा समिति में बने रहना चाहिए?
 वैसे सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का तकाजा तो इस बात की इजाजत नहीं देता।
2. अण्णा हजारे के समर्थकों का कहना है कि ये सारे आरोप सरकार प्रायोजित है?
 ये सच भी हो सकता है। लेकिन करप्शन के खिलाफ जंग शुरु करने से पहले क्या अण्णा और उनकी टीम को अपने गिरेबान में नहीं झांकना चाहिए था?
3. करप्शन के खिलाफ जंग में सच के सिपाहियों का सबसे बड़ा आधार और हथियार क्या होता है?
निसंदेह उनका नौतिक बल....।
4. शांतिभूषण और प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट के वकील है। प्रोफेशनल मजबूरी के चलते उन्होंने कई झूठ सच बोले होंगे, क्या वे इससे इंकार कर सकते हैं?
फिर जो व्यक्ति प्रोफेशनल मजबूरी में ही सही अनैतिक के सामने झुक सकता है तो उसके नैतिक बल की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है।
5. अण्णा कहते है कि कमेटी में विशेषज्ञों की जरूरत हैं, बिल्कुल सही है। लेकिन सवाल ये है कि क्या देश में भूषण पिता-पुत्र अकेले कानूनी विशेषज्ञ हैं?  देश में अविवादित, इमानदार और नैतिकबल से लबरेज कानूनविदों की कमी नहीं है। फिर भूषण पिता-पुत्रों के लिए पूरे आंदोलन की प्रामाणिकता और सफलता को दांव पर लगाने का क्या मतलब?
अण्णा और उनके साथियों को याद रखना चाहिए कि आज करप्शन के खिलाफ जंग में पूरा देश उनके साथ है। अण्णा के पक्ष में जितनी तेजी से जनसमर्थन का ध्रुवीकरण हुआ है उतनी ही तेजी से इसका विखंडन भी हो सकता है। अब सबको साथ लेकर चलने और जनसमर्थन में विखंडन न होने देने की जिम्मेदारी अण्णा हजारे और भूषण पिता-पुत्र पर है। देखते हैं आगे क्या होता है।  

आंध्र के अण्णाओं के आय़ के स्त्रोतों की जांच हो!


 आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएसआर रेड्डी के नाम पर नई पार्टी वाईएसआर कांग्रेस बनाने वाले जगनमोहन रेड्डी ने लोकसभा उपचुनाव के लिए अपनी संपत्ति का ब्यौरा दिया है। जगन ने अपनीं संपत्ति 365 करोड़ रुपए बताई है। गौर करने वाली बात यह है कि साल 2009 में जब जगन ने 2009 चुनाव के दौरान अपनी संपत्ति मात्र 77 करोड़ रुपए बताई थी।

गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी और संसदीय पद से इस्तीफा देने वाले जगन कडप्पा लोकसभा सीट पर उपचुनाव लड़ रहे हैं। यह चुनाव 8 मई को होना है। जगन ने अब अपनी संपत्ति का ब्यौरा देते हुए खुद को 365 करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति का मालिक बताया है।

इसके साथ ही जगन ने तेलुगुदेशम पार्टी के सांसद नामा नागेश्वर राओ की संपत्ति का रिकार्ड भी तोड़ दिया है। नागेश्वर ने आंध्र प्रदेश की खम्माम सीट से नामांकन भरते वक्त अपनी संपत्ति 173 करोड़ रुपए बताई थी।

वहीं जगन ने अपनी पत्नी भारती की संपत्ति का भी ब्यौरा दिया है। भारती के नाम 4133 करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति दर्ज है। जगन के नाम पर हैदराबाद, कडप्पा और बैंगलुरु में संपत्तियां तो दर्ज हैं लेकिन मजे की बात यह है कि उनके नाम कोई भी वाहन नहीं है। जगन की संपत्ति का ज्यादातर हिस्सा कंपनियों में बांड और शेयरों के रूप में है। उनके भारती सीमेंट और संदुर पॉवर प्रोजेक्ट में शेयर हैं।

पिछले साल नवंबर में कांग्रेस से अलग हुए जगन ने लोकसभा सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया था। पिछले महीने ही उन्होंने वाईएसआर कांग्रेस के नाम से नई राजनीतिक पार्टी बनाई है।

वहीं 365 करोड़ रुपए की संपत्ति का ब्यौरा देने के बाद से ही जगन प्रदेश की सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्ष की तेलुगुदेशम पार्टी के निशाने पर आ गए हैं। दोनों ही पार्टियां उनके परिवार पर 2004 से 2009 के बीच सत्ता में रहते हुए धन कमाने का आरोप लगा रही हैं।

गौरतलब है कि पिछले साल सितंबर में जब जगन ने एडवांस टैक्स के रूप में 84 करोड़ रुपए का भुगतान किया था तबसे ही टीडीपी उनकी संपत्ति की सीबीआई जांच कराने की मांग कर रही है। टीडीपी का आरोप है कि जगन की संपत्ति कई हजार करोड़ रुपए में है।

38 वर्षी जगन रेड्डी के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और अन्य राज्यों में कई पॉवर प्रोजेक्टों और सीमेंट कंपनियों में शेयर हैं। तेलुगु का प्रमुख अखबार साक्षी और इसी नाम का टीवी चैनल भी जगन का ही है।

मजे की बात यह है कि देश के ज्यादातर अमीर सांसद आंध्र प्रदेश से ही हैं। 2009 चुनाव के नामांकन के दौरान कांग्रेसी सांसद एल राजागोपाल ने 100 करोड़ से अधिक और पार्टी के ही अन्य सांसद जी विवेक ने 73 करोड़ रुपए की संपत्ति घोषित की थी।
ये तो एक उदाहरण है सत्यम के रामा लिंगम राजू का उदहारण भी हमारे सामने है। आखिर आंध्र में इतना पैसा आता कहा से हैं? इस बात की जांच होनी चाहिए। 

स्वामी अग्निवेश का नक्सली कनेक्शन

पिछले दिनों लोकपाल विधेयक पर अन्ना हज़ारे के अनशन के दौरान स्वामी अग्निवेश काफ़ी सक्रिय थे। छत्तीसगढ़ की सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर निगरानी रखने की आदेश जारी किए हैं। राज्य के ख़ुफ़िया विभाग से कहा गया है कि वह अग्निवेश की हर गतिविधि पर नज़र रखे। इस आशय का आदेश राज्य के गृह मंत्री ननकीराम कँवर ने जारी किया है।

बीबीसी से एक साक्षात्कार में छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री ने आरोप लगाया है कि बिनायक सेन के साथ-साथ स्वामी अग्निवेश भी माओवादियों के शहरी नेटवर्क का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि डॉक्टर बिनायक सेन सान्याल नक्सलियों के शहरी नेटवर्क के लिए काम कर रहे थे और उन्हें लगता है कि अग्निवेश्जी भी शहरी नेटवर्क में हैं।

कँवर का कहना था कि उन्होंने "व्यक्तिगत रूप से" पुलिस विभाग से स्वामी अग्निवेश पर निगरानी रखने का लिखित आदेश दिया है। इतना ही नहीं गृहमंत्री का कहना है कि उन संगठनों पर भी नज़र रखी जा रही है जो अपने काय्रक्रमों में स्वामी अग्निवेश को आमंत्रित करते हैं।

मामला

यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब स्वामी अग्निवेश 11 से 14 अप्रैल के बीच दंतेवाड़ा के चिंतलनार इलाक़े के कुछ गाँवों में कथित रूप से सुरक्षा बलों की ज़्यादतियों के पीड़ित लोगों से मिलने जा रहे थे।

इन आरोपों के बाद कि सुरक्षा बलों ने आदिवासियों के 300 घरों को जला दिया है, महिलाओं से बदसुलूकी की है और कुछ ग्रामीणों को मार गिराया है, अग्निवेश आर्ट ऑफ़ लीविंग के आचार्य मिलिंद के साथ राहत सामग्री लेकर उस इलाक़े में जा रहे थे।

आरोप हैं कि राहत लेकर जा रहे अग्निवेश के काफ़िले को दोरनापाल के पास रोका गया और उन पर हमला किया गया. इस दौरान ना सिर्फ़ उनके और आचार्य मिलिंद के साथ धक्का-मुक्की की गई, बल्कि उनकी गाड़ी पर पत्थर और अंडे फेंके गए।

यह सब कुछ बावजूद इसके हुआ जबकि स्वामी अग्निवेश को राज्य सरकार की तरफ़ से काफ़ी सुरक्षा मुहैया कराई गई थी. अग्निवेश ने उस इलाक़े में दो बार जाने की कोशिश की लेकिन दोनों ही बार उन्हें हिंसक विरोध का सामना करना पड़ा।

अग्निवेश का आरोप है कि कोया कमांडो और विशेष पुलिस अधिकारियों नें उन पर हमला किया. ना सिर्फ़ उनपर बल्कि बस्तर संभाग के कमिश्नर, दंतेवाड़ा के कलक्टर और पत्रकारों पर भी इसी गुट की ओर से हमले किये गए।

ज़िम्मेदारी
यहाँ तक कि अनुमंडल अधिकारी, कलक्टर और कमिश्नर को भी विशेष पुलिस अधिकारियों और कोया कमांडो ने पीड़ित गाँवों में जाने से रोक दिया।
स्वाभाविक आक्रोश 

छत्तीसगढ़ के सीएम रमन सिंह ने कहा है कि वह ऐसा स्थान है जहां लगातार तीन बड़ी घटनाओं में सीआरपीएफ़, विशेष पुलिस अधिकारी और कोया कमांडो के 91 जवान शहीद हुए हैं। उस क्षेत्र में तहसीलदार के नेतृत्व में राहत सामग्री लेकर जाने वालों पर आक्रमण हुआ। मुझे लगता है कि जब तक स्थिति सामान्य ना हो, वहाँ पर जाने में दिक्कत आ सकती है क्योंकि उस क्षेत्र के लोगों के मन में आक्रोश है।

स्वामी अग्निवेश ने कहा कि चिंतलनार इलाक़े की घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी मुख्यमंत्री रमन सिंह को लेनी चाहिए। इसके अलावा इस मामले को लेकर अग्निवेश सुप्रीम कोर्ट भी गए जहां अदालत ने छत्तीसगढ़ की सरकार से पूछा कि आखिर यह कोया कमांडो कौन हैं और उन्हें कैसे बहाल किया गया है।

वहीं दूसरी तरफ़ मुख्यमंत्री रमन सिंह का कहना है कि स्वामी अग्निवेश और राहत लेकर जा रहे अधिकारियों को लोगों के "स्वाभाविक आक्रोश" का सामना करना पड़ा.

रमन सिंह कहते हैं, "वह ऐसा स्थान है जहां लगातार तीन बड़ी घटनाओं में सीआरपीएफ़, विशेष पुलिस अधिकारी और कोया कमांडो के 91 जवान शहीद हुए हैं। उस क्षेत्र में तहसीलदार के नेतृत्व में राहत सामग्री लेकर जाने वालों पर आक्रमण हुआ। मुझे लगता है कि जब तक स्थिति सामान्य ना हो, वहाँ पर जाने में दिक्कत आ सकती है क्योंकि उस क्षेत्र के लोगों के मन में आक्रोश है। उन्हें लगा के लोग राहत लेकर नक्सलियों के सहयोग और समर्थन के लिए जा रहे हैं। अब चक्का जाम की स्थिति में पुलिस के अधिकारी क्या कर सकते हैं जब आम आदमी वाहन लेकर बैठे हैं। दो हज़ार लोग बैठे हैं। तो लोग लौट कर आ गए। ठीक है। कुछ अंडे फेंके गए। जब स्वाभाविक आक्रोश स्थानीय लोगों में आता है तो उसकी प्रतिक्रिया होती है।"

चिंतलनार के घटनाक्रम के बाद राज्य सरकार ने वह सीडी सार्वजनिक की, जिसमें स्वामी अग्निवेश माओवादियों द्वारा 25 जनवरी को अगवा किए गए पांच जवानों की रिहाई के लिए मध्यस्थता करने नारायणपुर ज़िले के अबूझमाड़ के जंगलों में गए हुए थे।

अग्निवेश का कहना है कि वह छत्तीसगढ़ की सरकार के अनुरोध पर मध्यस्थता करने आए थे. उनके साथ मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा और कविता श्रीवास्तव भी शामिल थी।

आरोप

छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री ननकीराम कँवर का कहना है कि सीडी में अग्निवेश को "भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) को लाल सलाम" का नारा लगाते हुए दिखाया गया है।
आप सीडी देखेंगे तब समझ में आएगा। वह नारे लगा रहे हैं भारत की सेना वापस जाओ।

ननकीराम कँवर

बीबीसी को दिए साक्षात्कार में कँवर कहते हैं, "आप सीडी देखेंगे तब समझ में आएगा. वह नारे लगा रहे हैं भारत की सेना वापस जाओ।" कँवर का कहना है कि सरकार मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालना नहीं चाहती है।

उन्होंने कहा, "विभाग के लोग और मुख्यमंत्री भी कहते हैं कि मधुमक्खी के छत्ते में हाथ मत डालो। लेकिन हाथ तो डालना ही है माओवादियों के शहरी नेटवर्क में. अब साधू के वेश में तो मुश्किल है ना।"

गृह मंत्री का कहना है कि अब आम लोग भी अग्निवेश के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

कँवर आगे कहते हैं, "विभाग को मैंने व्यक्तिगत रूप से बोल दिया है कि उन पर निगरानी रखे, जितने संगठनों में वह जाते हैं उन संगठनों के क्रियाकलापों पर भी नज़र रखें।"

उन्होंने बताया कि निगरानी का मतलब ये कि वे किस तरह के लोगों से मिलते हैं, किस तरह उनको बहकाते हैं और किस तरह के लोगों के साथ काम करते हैं।

पुणे में जुड़े हैं बलवा से पवार के तार

 केंद्रीय कृषि मंत्री और एनसीपी चीफ शरद पवार भले ही यह कह रहे हैं कि उनका 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन मौजूद दस्तावेज बताते हैं कि यह पूरा सच नहीं है। पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनके पति सदानंद की पुणे के पंचशील रियल्टी के पंचशील टेक पार्क वन प्रोजेक्ट में चार प्रतिशत की हिस्सेदारी है, जिसके सीधे-सीधे संबंध डीबी रियल्टी से है।

गौरतलब है कि सीबीआई के सामने राडिया ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि मुंबई में यह आम धारणा है कि डीबी रियल्टी को शायद शरद पवार नियंत्रित करते हैं। शायद उन्होंने स्वान टेलीकॉम के लिए स्पेक्ट्रम और लाइसेंस के मुद्दे को लेकर पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर दबाव भी डाला था। राडिया का यह बयान सीबीआई के आरोप पत्र का हिस्सा है। लेकिन इसमें राडिया ने खुद यह भी कहा है कि मेरे पास साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है। पवार ने कहा कि यह बयान बेबुनियाद और झूठ है। राडिया के इस दावे को इतना महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन, शाहिद बलवा की डीबी रियल्टी और पंचशील रियल्टी में सीधा संबंध पुणे के येरवडा की 15 हजार करोड़ रुपए मूल्य की करीब 19 एकड़ जमीन के विकास से जुड़ा है।

पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (पीएमसी) और जिला कलेक्टर कार्यालय में मौजूद दस्तावेजों के अनुसार पंचशील टेक पार्क वन आईटी प्रोजेक्ट और डीबी रियल्टी (हिलसाइड कंस्ट्रक्शन प्रा.लि.) के द ग्रांड हयात फाइव स्टार होटल प्रोजेक्ट की जमीन के सर्वे क्रमांक 191 (ए) को दो हिस्सा नंबरों में नहीं बांटा गया है।जमीन के बंटवारे के साथ ही मुख्य सर्वे नंबर में जमीन के टुकड़ों को अलग-अलग हिस्सा नंबर आवंटित किए जाते हैं।अलग-अलग हिस्सा नंबर लिए बिना यदि दो कंपनियां काम कर रही है तो टाउन प्लानर्स के मुताबिक उनमें आपसी सहमति या भागीदारी निश्चित है।

पंचशील टेक पार्क वन के मैनेजिंग डायरेक्टर अतुल चोरडिय़ा का कहना है कि डीबी रियल्टी और पंचशील रियल्टी का सर्वे नंबर एक ही था, लेकिन पंचशील का सिटी सर्वे नंबर (2175) अलग है। दूसरी ओर राज्य के टाउन प्लानिंग विभाग के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर रामचंद्र गोहद का कहना है कि अलग हिस्सा नंबर नहीं लिए गए, जिससे यह साबित होता है कि जमीन बांटी नहीं गई। सिटी सर्वे नंबर सिर्फ जमीन पर प्लॉट की स्थिति बताता है।

क्या शरद पवार के डीबी रियल्टी के साथ संबंध हैं?
अप्रत्यक्ष रूप से तो है। उनकी बेटी सुप्रिया सुले की एक फर्म में हिस्सेदारी है, जिसे डीबी रियल्टी से फायदा पहुंचा।

कैसे जुड़ रहे हैं तार...
पंचशील रियल्टी और डीबी रियल्टी दोनों प्रोजेक्ट एक ही सर्वे नंबर 191 (ए) में आते हैं। दोनों ने अलग-अलग हिस्सा नंबर भी नहीं लिया। टाउन प्लानर्स का कहना है कि हिस्सा नंबर एक होने से मतलब साफ है कि आपसी सहमति से जमीन विकसित की गई है।
पुणे ट्रस्ट : मुकुंद भवन ट्रस्ट ने येरवडा में स्थित जमीन डीबी रियल्टी को पुणे के पूर्व कलेक्टर श्रीनिवास पाटिल की मदद से ट्रांसफर की। पाटिल ने बाद में एनसीपी की सदस्यता ले ली।

सेल डीड (विक्रय पत्र) बताता है कि इस जमीन को विकसित करने के अधिकार डीबी रियल्टी को थे। पंचशील रियल्टी के प्रमोटर अतुल चोरडिय़ा है। अतुल के पिता ईश्वरदास और शरद पवार पुणे बृह्न महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स (बीएमसीसी) में क्लासमेट थे। 

दिसंबर 2003 : ट्रस्ट ने डीबी रियल्टी से येरवडा के सर्वे क्रमांक 191(ए) की जमीन के हिस्से को विकसित करने का करार किया। 
शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनके पति सदानंद की पंचशील टेक पार्क वन प्रोजेक्ट में 4 फीसदी की हिस्सेदारी है।

पंचशील रियल्टी ने इस जमीन पर पंचशील टेक पार्क वन (आईटी पार्क) प्रोजेक्ट विकसित किया है।
फरवरी 2004 : ट्रस्ट और डीबी रियल्टी के ले-आउट प्लान को पीएमसी ने पास किया और मई में पंचशील ने जमीन का हिस्सा 7 करोड़ में खरीदा।

विनोद गोयनका डीबी रियल्टी के डायरेक्टर हैं, जिनके पिता को शरद पवार पिछले 35 साल से जानते हैं।

डीबी रियल्टी इस प्लॉट पर 5 स्टार ग्रांड हयात होटल बना रही है। कंपनी के प्रमोटर शाहिद बलवा 2जी घोटाला मामले में सजा काट रहे हैं।

सर्वे नंबर 191 (ए) की जमीन अस्पताल, हाईस्कूल और खेल के मैदान के लिए आरक्षित थी। महाराष्ट्र सरकार ने 2007 में आपत्तियों के बावजूद यह बाध्यताएं समाप्त की

गुरुवार, अप्रैल 14, 2011

घर होंगे और भी महंगे: राजकुमार सिंह

महानगर को डिवेलप करने वाले बिल्डरों के सामने बीएमसी नई शर्त रखने जा रही है। डिवेपलर्स को निर्माण कार्य शुरू करने से पहले वहां पर लेबर कैंप बनाने अनिवार्य होंगे, वर्ना बीएमसी बिल्डिंग बनाने की अनुमति नहीं देती। यह शर्त छोटे व मीडियम बिल्डरों के लिए एक मुसीबत बन जाएगी।

नई शर्त जोड़ने से प्रॉजेक्ट लागत में निश्चित ही बढ़ोतरी होगी जिसकी वसूली बिल्डर घर खरीदने वालों से ही करेगी। इससे मकानों की कीमतें बढ़ जाएगी। इस बाबत बीएमसी के डायरेक्टर अशोक शिंत्रे ने बताया कि आईओडी (इंटीमेशन ऑफ डिसअप्रूवल) में यह नई शर्त जोड़ने के बाबत खाका तैयार किया जा रहा है। इस बारे में डिवेलपमेंट प्लान डिपार्टमेंट नियम कानून बना रहा है।

कहां से आई योजना 
दरअसल, पिछले दिनों शहर का एक नामी बिल्डर अपनी योजना मंजूरी कराने के लिए कमिश्नर सुबोध कुमार के पास आया। बिल्डर ने अपने प्रॉजेक्ट का नक्शा कमिश्नर के सामने रखा। उस बिल्डर का बड़ा प्रॉजेक्ट था और उसने अपने प्रोजेक्ट में लेबरों के लिए लेबर कैंप बनाने का प्रावधान कर रखा था। लेबर कैंप के बात कमिश्नर के दिमाग के घर कर गई। बिल्डर जैसे की उनके दफ्तर से बाहर निकला वैसे ही उन्होंने डायरेक्टर अशोक शित्रे को बुलाया।

उन्होंने शित्रे को आदेश दिया कि वे आईओडी में लेबर कैंप बनाने की शर्त अनिवार्य करें। कमिश्नर के आदेश का पालन करते हुए डिवेलपमेंट प्लान डिपार्टमेंट के अधिकारी माथापच्ची कर रहे हैं। इन अधिकारियों का कहना है कि बड़े प्रॉजेक्ट में लेबर कैंप बनाया जा सकता है मगर छोटे प्रॉजेक्ट में यह संभव ही नहीं है। हालांकि, छोटे व मीडियम प्रॉजेक्ट में लेबर के लिए सहूलियत दी जाती है और हमारे असिस्टेंट इंजिनियर निर्माण कार्य स्थल पर जाकर खुद मुआयना करते हैं और उसे मंजूर भी करते हैं।

उन्होंने बताया कि लेबर कैंप अस्थायी होता है जैसे ही बिल्डिंग बन कर तैयार हो गई वैसे ही डिवेलपर्स लेबर कैंप को हटा देगा। अधिकारियों ने स्वीकार किया कि लेबर कैंप अनिवार्य करने से निर्माण खर्च बढ़ेगा जिसकी वसूली बिल्डर घर खरीदने वालों से ही करेगा।

लेबर कैंप क्या है 
लेबर कैंप में मजदूरों को बुनियादी सुविधा मुहैया कराई जाती है। खाना बनाने के लिए कमरे शौचालय और नहाने केलिए कमरे उनके बच्चों को पढ़ाई लिखाई की सुविधा मेडिकल सुविधा जैसी अन्य सुविधा कराना होता है। यह लेबरकैंप तब तक के लिए रहता है जब तक कि निर्माण कार्य स्थल का काम पूरा नहीं हो जाता। जैसे ही निर्माण कार्य पूरा हुआवैसे ही इसे तोड़ कर गिरा दिया जाता है।

प्रधानमंत्री के वोट ना देने पर नरेंद्र मोदी ने लगाई लताड़

 देश के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस समय जिस तरह के हालातों का सामना कर रहे हैं, वैसे हालात किसी भारतीय प्रधानमंत्री के सामने कभी आए हों, ऐसा सोचना भी मुश्किल है। हर कोई उन पर किसी भी बात को लेकर बरसने के लिए तैयार रहता है। शालीन और विनम्र प्रधानमंत्री की उनकी छवि इतनी दागदार हो चुकी है कि हर कोई उनसे सवाल पूछने पर जुटा है। 


ताजा सवाल गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह की ओर दागा है। वैसा उनका सवाल है भी लाजमी। मोदी ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि असम विधानसभा चुनाव में वोट डालने क्यों नहीं गए। मालूम हो कि हाल ही में असम के विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं। प्रधानमंत्री राज्यसभा में असम राज्य से सांसद हैं। मोदी ने कहा, मुझे इस बात का बेहद दुख है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह असम में हुए विधानसभा चुनावों में वोट डालने नहीं गए। ये इस देश का दुर्भाग्य है और यहां के लोगों के लिए बेहद दुख भरी खबर है।

असम में इसी सोमवार को चुनाव संपन्न हुए हैं। मोदी ने कहाकि अंबेडकर जयंती के अवसर पर इस तरह की बातें करते हुए मुझे बेहद दुख हो रहा है पर ये सच है कि हमारे प्रधानमंत्री ही अपने वोट का इस्तेमाल करने के प्रति उदासीन हैं। उल्लेखनीय है कि, मनमोहन सिंह और उनकी पत्नी गुरुशरण कौर दोनों ही असम की राजधानी दिसपुर से नामांकित हैं।

प्रधानमंत्री का एक वोट कोई मायने नहीं रखताः सिंघवी


असम के वोटर होने के बावजूद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वहां हुए विधानसभा चुनाव में वोट न डालने के पीछे कांग्रेस ने बचकानी दलील दी है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा है कि पीएम के एक वोट के कोई मायने नहीं होते।
गौरतलब है कि असम चुनाव में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के वोट न डालने पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनपर निशाना साधा था। मोदी ने कहा कि पीएम ने अपना फर्ज नहीं निभाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और उनकी पत्नी गुरशरण कौर असम के दिसपुर निर्वाचन क्षेत्र के रजिस्टर्ड वोटर हैं और उनका वोटिंग सेंटर दिसपुर गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल था। लेकिन दोनों ही वोट डालने नहीं पहुंचे।
मोदी के बयान पर कांग्रेस की ओर से पीएम का बचाव करने प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी सामने आए। लेकिन सिंघवी ने इसके पीछे बचकानी और गैरजिम्मेदाराना दलील दी। सिंघवी ने कहा कि विपक्ष अच्छी तरह जानता है कि पीएम के एक वोट के कोई मायने नहीं होते। वहीं प्रधानमंत्री की यात्रा से सुरक्षा से संबंधित कई गंभीर मुद्दे उठते हैं। अस्थिरता पैदा होती है।
पीएम की सुरक्षा का मसला तो ठीक लेकिन सिंघवी का ये कहना कि पीएम के एक वोट के कोई मायने नहीं होते जानकारों को हैरान कर रहा है। लोकतंत्र में जहां एक-एक वोट को कीमती बताया जाता है वहीं सत्तारूढ़ पार्टी का अपने पीएम के वोट को भी बेमतलब बताना न सिर्फ अजीबोगरीब बल्कि लोकतंत्र का अपमान भी है। सवाल ये है कि यदि हर नागरिक ये सोचकर अपने घर बैठ जाए कि उसके वोट से क्या फर्क पड़ेगा तो भारत का पूरा संसदीय ढांचा ही ढह जाएगा।